Mobile Tariffs Increased, टेलीकॉम एक्ट, ब्रॉडकास्ट बिल, Vodafone Idea, Jio Tariff plan, Airtel Tariff Plan, TRAI, प्रधानमंत्री मोदी, प्रधानमंत्री मोदी और टेलीकॉम सेक्टर, प्रधानमंत्री मोदी ने 5G लॉन्च किया, फोन का डेटा सस्ता, कुमार मंगलम बिड़ला , मुकेश अंबानी,
Mobile Tariffs Increased: मोबाइल फोन पर बात करना महंगा हो गया है। फोन ही नहीं, इंटरनेट का डाटा भी महंगा हुआ है। आखिर सरकार क्यों चाहेगी कि महंगाई के इस दौर में आपका फोन महंगा हो जाए, इंटरनेट का डाटा महंगा हो जाए?
फोन और इंटरनेट की इस महंगाई को आप हाल ही में लागू टेलीकॉम एक्ट के प्रावधानों के साथ मिलाकर देखिए और प्रस्तावित ब्रॉडकास्ट बिल के पीछे की नीयत को भी जोड़कर देखिए। तब आपको दिखेगा कि ना सिर्फ सरकार इन कानूनों के जरिए आपके फोन पर पहरेदारी बढ़ा रही है।
3 जुलाई से एटेल ने अपने टैरिफ प्लान बढ़ा दिए। 4 जुलाई से Vodafone Idea का भी यही हाल है। जिओ ने औसतन 20% टैरिफ बढ़ाया, जिससे हर कस्टमर पर 30.51 रूपये प्रति माह का अतिरिक्त बोझ पड़ा।
जिओ के 48 करोड़ कस्टमर्स पर यह 1,464 करोड़ रुपया अतिरिक्त बोझ है, जो सालाना 17,568 करोड़ बनता है। इसी प्रकार से एरटेल ने औसतन 15% रेट बढ़ाया, जिससे उनके कस्टमर की संख्या 39 करोड़ है।
कुल मिलाकर, 10,704 करोड़ का सालाना बोझ कस्टमर्स पर पड़ा। वहीं, Vodafone Idea ने 16% टैरिफ बढ़ाया, जिससे प्रति कस्टमर 24.40 रूपये प्रति माह का अतिरिक्त बोझ पड़ा। 22 करोड़ 37 लाख कस्टमर्स से यह 546 करोड़ रुपये हर महीने और सालाना 6,552 करोड़ का बोझ बनता है।
कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी और टेलीकॉम सेक्टर की नियामक संस्था TRAI ने इसे कैसे होने दिया। 109 करोड़ फोन उपभोक्ताओं पर 1 साल में करीब 35,000 करोड़ का बोझ डालने से पहले सरकार या TRAI ने कोई अध्ययन भी कराया है क्या?
सभी सेलफोन कंपनियों ने औसतन 15 से 20% की वृद्धि कैसे कर दी? इतनी समानता कैसे आई?
1 अक्टूबर 2022 को प्रधानमंत्री मोदी ने 5G लॉन्च किया था। तब उस दिन मंच पर मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला सब मौजूद थे। प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से समझाया कि 2014 के बाद से उनकी सरकार की नीतियों से सेलफोन उपभोक्ता का 44,000 रुपये बच रहा है। क्या प्रधानमंत्री मोदी बताएंगे कि 35,000 करोड़ रुपये जब उपभोक्ताओं की जेब से निकाले जाएंगे, तो उनकी क्या राय है?
आज टेलीकॉम सेक्टर में जो क्रांति देश देख रहा है, वह इस बात का सबूत है कि अगर सरकार सही नीयत से काम करे, तो नागरिकों की नीयत बदलने में देर नहीं लगती। भारत आज दुनिया के उन देशों में है जहां डेटा इतना सस्ता है। पहले 1GB डेटा की कीमत जहां 300 रुपये के करीब होती थी, वही आज 1GB डेटा का खर्च केवल 11 रुपये तक आ गया है।
आज भारत में महीने भर में एक व्यक्ति मोबाइल पर औसतन 14GB डेटा इस्तेमाल कर रहा है। 2014 में इस 14GB डेटा की कीमत करीब 4,200 रुपये प्रति महीना होती थी। आज इतना ही डेटा 150 से 200 रुपये में मिल जाता है। यानी आज गरीब और मध्यम वर्ग के मोबाइल डेटा के करीब 4,000 रुपये हर महीने बच रहे हैं।
हमारी सरकार के इतने सारे प्रयासों से भारत में डेटा की कीमत बहुत कम बनी हुई है। अगर प्रधानमंत्री मोदी डेटा महंगा होने को 2G के घोटाले से जोड़ रहे हैं, तो इस बार जो महंगा हुआ है, उसके बारे में इतना तो साफ कर ही दें कि टैरिफ बढ़ने में किसी घोटाले का हाथ नहीं है।
आखिर फोन का डेटा सस्ता है, तो सरकार श्रेय ले रही है। अब सरकार क्या कह रही है? कांग्रेस तो यही पूछ रही है कि जिस तरह से सेलफोन उपभोक्ताओं पर भार डाला गया, उनकी जेब से 35,000 करोड़ रुपये उड़ने वाले हैं, उस पर जवाब दीजिए।
प्रधानमंत्री कब बोलेंगे? 109 करोड़ भारतीय सेलफोन यूजर्स पर जिसमें रेडी वाला, पटरी वाला, पत्रकार, मजदूर, गृहणी, छात्र, युवा, किसान, दलित, पिछड़ा सब शामिल हैं, उन पर 35,000 करोड़ का भार क्यों डाल दिया गया?
जनवरी 2023 में जब एरटेल ने कुछ राज्यों में अपना सबसे सस्ता प्लान बंद कर दिया, तब आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बयान दिया कि इससे डिजिटल इंडिया के विकास में रुकावट पैदा होगी।
क्या चुनाव के दौरान और बाद में कंपनियों ने दाम बढ़ाने से पहले कोई अध्ययन कराया था? जनवरी 2023 में मंत्री जी ने यह भी कह दिया कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण यह वृद्धि हुई है।
इस समय के नए आईटी मंत्री को बताना चाहिए कि क्या युद्ध के कारण तीन कंपनियों ने डेटा का दाम बढ़ाया है या चुनाव बीत जाने के बाद किसी कारण से बढ़ाया है?
जिओ का 3GB डेटा का महीने का चार्ज पहले 229 रुपये था, अब यह बढ़कर 299 रुपये महीना हो गया है। कई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जिओ और वोडाफोन आइडिया ने भी अपने टैरिफ बढ़ा दिए हैं।
यह भी जानना जरूरी है कि टेलीकॉम एक्ट के तहत सरकार की कोशिश है कि वह ऑनलाइन कम्युनिकेशन सर्विसेस को भी इसमें शामिल करें। अगर ऐसा हुआ, तो सिग्नल, जूम, स्काइप और जीमेल भी सरकार की निगरानी में आ जाएंगे।
इस लेख में बताया गया है कि ऐतिहासिक रूप से इस तरह का कानून ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं पर लागू होता था, यानी टीवी और रेडियो पर। लेकिन अब यह जीमेल से लेकर जूम तक पर लागू होगा। सब के सब सरकार की निगरानी में होंगे।
टेक्स्ट हो, फोटो हो, ध्वनि के जरिए हो या कोई संकेत ही हो, सब पर पहरा लग जाएगा। सरकार ने पूरी तरह स्पष्ट नहीं किया है कि वह इंटरनेट सेवाओं में कितना हस्तक्षेप कर सकती है। आखिरकार, प्रधानमंत्री मोदी को बताना चाहिए कि 3 जुलाई से इंटरनेट का डेटा जो महंगा हुआ है, क्या इससे वे खुश हैं?